वीर नारायण सिंह [Veer Narayan Singh]
वीर नारायण सिंह
सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह बिंझवार की शौर्य गाथा इस अंचल के लिये सदैव अविस्मरणीय रहेगी. “अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा और विद्रोह की चिंगारियों से छत्तीसगढ़ क्षेत्र भी अछूता नहीं रह सका. सोनाखान की जमींदारी इसका प्रमुख केन्द्र था. सन् 1857 के बहुत पहले ही सोनाखान के जमींदार रामराय और उनके पिता ने मोर्चा खोल रखा था. बाद में अंग्रेजों ने राम राय से समझौता कर लिया था और शांति बनाये रखने के लिये उन्हें खालसा तालुका देना पड़ा था. साथ ही सोनाखान एकमात्र जमींदारी थी जिसे कोई टकोली नहीं देना होता था, बल्कि कंपनी से नामनूक के रूप में ₹5644 आने 7 पैसे वार्षिक प्राप्त करता था. यह अंग्रेजों के लिये चिड़ का विषय भी था.
जमींदार नारायण सिंह के विरुद्ध वारंट
सन् 1856 में छत्तीसगढ़ में सूखा पड़ा, जिससे सोनाखान जमींदारी के लोग दाने दाने को तरसने लगे. कसडोल के माखन नामक व्यापारी के पास अन्न के विशाल भण्डार थे. इस स्थिति में किसानों ने उधार में अनाज की माँग की, माखन द्वारा अनाज नहीं देने पर उन्होंने लोकप्रिय जमींदार नारायण सिंह के नेतृत्व में उतना ही अनाज निकाला, जितना भूख से पीड़ित किसानों के लिये आवश्यक था. उन्होंने अपनी इस कार्यवाही की सूचना तत्काल रायपुर के डिप्टी कमिश्नर को दे दी. माखन की शिकायत पर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट ने सोनाखान के जमींदार नारायण सिंह के विरुद्ध वारंट जारी कर दिया. नारायण सिंह को उपस्थित न होने पर संबलपुर में 14 अक्टूबर, 1856 को गिरफ्तार कर लिया गया.
![वीर नारायण सिंह [Veer Narayan Singh] 1 वीर नारायण सिंह [Veer Narayan Singh]](https://cg.sahity.in/wp-content/uploads/2021/05/वीर-नारायण-सिंह-Veer-Narayan-Singh.jpg)
वस्तुतः नारायण सिंह की राजनैतिक चेतना एवं जागरूकता ब्रिटिश अधिकारियों को चुनौती थी. कुरूंपाट में नारायण सिंह का डेरा था, कुळपाट का पानी पीकर सरदारों ने शपथ ली कि अब साहूकारों को सहन नहीं करेंगे. नारायण सिंह के नेतृत्व में 1856 को कसडोल पहुँच कर साहूकार की कोठी के धान को जब्त कर जरूरत के अनुसार जनता में बाँट दिया. यह घटना एक क्रांतिकारी घटना थी.
अंग्रेजों के विरुद्ध खुली बगावत
अंग्रेजी सत्ता की निगाहों में यह कानून का उल्लंघन था. नारायण सिंह को चोरी और डकैती के जुर्म में बंदी बनाया गया था. उसी समय देश में अंग्रेजी सत्ता के विरोध में विप्लव की अग्नि प्रज्वलित हुई. इस अवसर का लाभ उठाकर संभवतः संबलपुर के क्रांतिवीर सुरेन्द्रसाय की मदद से किसानों ने नारायण सिंह के रायपुर जेल से भाग निकलने की योजना बनाई. इस योजना में वे सफल हुये. जनता नारायण सिंह के आह्वान पर अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी. नारायण सिंह ने वह कमी अपनी उपस्थिति से पूरी कर दी. उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध खुली बगावत का ऐलान कर दिया था. उनकी गिरफ्तारी अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी थी.
स्मिथ के नेतृत्व में रायपुर से भेजी सेना जब खरौद होते हुये सोनाखान की ओर बढ़ रही थी, यह दुर्भाग्य की बात है कि छत्तीसगढ़ के कतिपय अनेक जमींदारों ने इस समय अंग्रेजों की खुलकर सहायता की. स्मिथ के नेतृत्व में आंग्ल सेना ने नारायण सिंह के चाचा देवरी जमींदार की मदद से सोनाखान को चहुँ ओर से घेरकर एक लम्बे संघर्ष के पश्चात् देशभक्त वीर नारायण सिंह को कैद कर लिया, उन पर अभियोग लगाकर फाँसी की सजा सुनाई गई.
निधन
10 दिसंबर, 1857 को वीर नारायण सिंह को जयस्तंभ चौक में तोप से उड़ा दिया गया. इस तरह इस अंचल के महान् सपूत का दुःखद् अंत हुआ.