पं. रामदयाल तिवारी
पं. रामदयाल तिवारी
पं. रामदयाल तिवारी का जन्म 23 जुलाई, 1892 को रायपुर में हुआ. इनके पिता प्राथमिक शाला में अध्यापक थे.
पं. रामदयाल तिवारी मेधावी छात्र थे. जब आप हाईस्कूल में पढ़ रहे थे. तब आपके पिता सेवामुक्त हो गये. फलतः ट्यूशन करके घर का खर्च चलाना पड़ा, म्यूनिस्पल के लैंप के नीचे बैठकर आपको पढ़ना पड़ता था. चित्रकला में आपकी विशेष रुचि थी.

सन् 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास कर 1911 में इलाहाबाद से बी.ए. की परीक्षा पास की और रायगढ़ के हाईस्कूल में अध्यापक हो गए. 1915 में आप वकालत की परीक्षा पास कर वकालत करने लगे. आप हिन्दी के साथ साथ अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, उड़िया और उर्दू के भी मर्मज्ञ थे. इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के संबंध में छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य के विकास नामक अध्याय में पृथक् से किया गया है.
वे एक समर्थ समालोचक थे. सन् 1930 के बाद उन्होंने अपना अधिक समय साहित्य सेवा में लगाया. 1935 में वे एक मोटर दुर्घटना में घायल हो गए तथा उन्हें कई महीने अस्पताल में रहना पड़ा. इस अवधि में उन्होंने गांधी मीमांसा की रचना की. गांधीजी पर लिखे ग्रंथ से उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने लगा. उन्होंने अपने विचारों व लेखनी के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन को शक्ति प्रदान की. वे पत्रकार, साहित्यकार, इतिहासकार एवं जनसेवक के रूप में जाने जाते हैं. वे सन् 1942 के बम्बई अधिवेशन में सम्मिलित हुए. उस समय उनका स्वास्थ्य बहुत खराब था. लौटने पर वे और भी अस्वस्थ हो गए.
22 अगस्त, 1942 को उनका देहावसान हो गया. उनके प्रयासों ने राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.