दण्डकारण्य का पठार [plateau of dandakaranya]
दण्डकारण्य का पठार [plateau of dandakaranya]
स्थिति
छत्तीसगढ़ के मैदान के दक्षिण में बस्तर का पठार है जो पूर्व में ओडिशा के पठारी भाग से जुड़ा हुआ है. छत्तीसगढ़ के कड़प्पा बेसिन के दक्षिण में आद्यमहाकल्प युग की ग्रेनाइट तथा नीस का एक विस्तृत प्रदेश प्रारम्भ होता है. बस्तर का पठार इसी का भाग है. इसका विस्तार 17°46′ से 20°34′ उत्तरी अक्षांश तथा 80°18 से 82°15′ पूर्वी देशांतर के मध्य है. यह प्रदेश के दंतेवाड़ा, काँकर, जगदलपुर जिलों में तथा राजनांदगाँव जिले की मोहला तहसील के दक्षिणी भाग तक विस्तृत है. इसका क्षेत्रफल 39060 वर्ग किमी है, जोकि छत्तीसगढ़ राज्य का 28.91% है.
पठार की उत्तरी सीमा पर 304-457 मी ऊँचा हल्का ढलवा पठार है, तो ग्रेनाइट नीस द्वारा बना हुआ है. बीच-बीच में धारवाड़ शैल समूह की पहाड़ियाँ हैं जिनमें लोहे के विशाल संचित भण्डार हैं, इनमें दल्लीराजहरा की पहाड़ियाँ उल्लेखनीय हैं. दक्षिण की ओर केसकाल के प्रपातीय कगार द्वारा ऊँचा पटार प्रारम्भ होता है, जो कगार लगभग 152-305 मी ऊँचा है. इस ऊँचे पठार पर कड़प्पा शैल तथा विन्ध्यन शैल समूह मिलते हैं. दण्डकारण्य में अधिकतर इसी प्रकार के पठार प्राप्त होते हैं, केवल दक्षिण में पुनः नीचा मैदान है. इस पठार के दक्षिण-पश्चिम का भाग ‘अबूझमाड़ की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है.
जगदलपुर के कोंडागाँव तथा जगदलपुर तहसीलों के निकट एक अन्य पठारी भाग मिलता है जो उत्तर में केसकाल कगार के निकट 762 मी ऊँचा है और दक्षिण की ओर ढलवां होने के कारण जगदलपुर के निकट केवल 610 मी रह जाता है. यह पठारी भाग मुख्यतः ग्रेनाइट नीस का बना हुआ है. इसे बस्तर का पठार कहा जाता है. उपर्युक्त पठार का दक्षिण-पश्चिम हिस्सा अपेक्षतया नीचा है जिसकी ऊँचाई 305-610 मी के मध्य है. उत्तर-पश्चिम की तुलना में यह क्रमशः नीचा होता गया है. इसी निचले हिस्से पर बैलाडीला की पहाड़ियाँ हैं जिनकी ऊँचाई 1210 मी तक पहुंच गई हैं. इसमें दो समानान्तर पहाड़ियाँ हैं, जो दक्षिण की ओर फैली है. इसके दक्षिण में बस्तर का मैदान है जिसकी ऊँचाई 152-305 मी है.
दण्डकारण्य के पठार की औसत ऊँचाई 150 मी है. अधिकतम ऊँचाई 1210 (बैलाडिला) तक पहुँच जाती है. इसे मुख्यतः निम्नलिखित चार उप-विभागों में बाँटा जा सकता है-
(1) कोटरी बेसिन-
यह कोटरी नदी द्वारा निर्मित है. पठार के दक्षिण पश्चिम सीमान्त में स्थित पखांजुर, भानुप्रतापपुर तथा मोहला (दक्षिणी भाग) तहसीलों तक विस्तृत है. औसत ऊँचाई 300-450 मी है. कोटरी नदी दक्षिण की ओर चलते हुए इंद्रावती में मिलती है.
(II) बस्तर का पठार-
यह दण्डकारण्य के उत्तर पूर्वी हिस्से में पड़ता है. इसका विस्तार चारामा, कांकेर, कोण्डागाँव, केसकाल, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, अंतागढ़, बीजापुर तहसीलों तक विस्तृत है. इसकी औसत ऊँचाई 450-750 मी है.
(III) अबूझमाड़ की पहाड़ियाँ–
वह पठार का दक्षिण पश्चिमी हिस्सा है. जहाँ औसत ऊँचाई 600-900 मी है. इसका विस्तार नारायणपुर, पखांजुर, बीजापुर, कोण्डागाँव तहसीलों में है.
(IV) बस्तर का मैदान –
यह दण्डकारण्य पठार एवं छत्तीसगढ़ राज्य का दक्षिणी सीमान्त क्षेत्र है. औसत ऊँचाई 150-300 मी है. इसका विस्तार भोपालपटनम्, दक्षिण बीजापुर एवं कोंटा तहसीलों तक है.
अपवाह-
लगभग सम्पूर्ण दण्डकारण्य गोदावरी के वेसिन का भाग है केवल उत्तर पूर्व के बहुत थोड़े भाग का जल महानदी में जाता है. गोदावरी की सहायक नदी इंद्रावती यहाँ की प्रमुख नदी है तो पूर्वी घाट से निकलती है (ओडिशा के कालाहांडी जिले के धर्मगढ़ तहसील के सुंगेर पर्वत से) तथा पठार के बीच पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई पश्चिमी सीमा पर दक्षिण की ओर मुड़ जाती है. कुछ दूरी तक छत्तीसगढ़ की पश्चिमी सीमा बनाती हुई ठीक पश्चिम की ओर मुड़कर आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले में गोदावरी में मिल जाती है. इसकी लम्बाई प्रदेश में 267 किमी है. वह प्रदेश के बस्तर एवं दंतेवाड़ा जिले में बहती है. इसकी सहायक नदियों में उत्तर की ओर नारंगी, बोरडिग, गुदरा, निबरा, कोटरी तथा दक्षिण की ओर दंतेवाड़ा में बेरूदी, चिन्तावागू, नंदीराज आदि छोटी नदियाँ हैं. गोदावरी की एक अन्य सहायक नदी सबरी भी है जो दंतेवाड़ा जिले के पास बैलाडीला पहाड़ी से निकलती है तथा पठार के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती हुई कुनावरम् (आंध्र प्रदेश) के पास गोदावरी में मिल जाती है. इस तरह लगभग सम्पूर्ण दण्डकारण्य गोदावरी प्रवाह प्रणाली के अन्तर्गत आता है. केवल उत्तर-पूर्व के बहुत थोड़े भाग (कांकेर तहसील) का जल, जहाँ से महानदी निकलकर उत्तर की ओर बहती है, महानदी प्रवाह क्रम में जाता है,
जलवायु –
दण्डकारण्य की जलवायु मानसूनी है. इस क्षेत्र में दिसम्बर में जगदलपुर का औसत तापमान 19-4° सें. तथा मई में 31-4 सें. रहता है. अधिकतम औसत तापमान अबूझमाड़ में मिलता है जहाँ वर्षा 187-5 सेमी तक हो जाती है. वीजापुर में वर्षा 117.5 से 150 सेमी के बीच होती है.
मिट्टी एवं वनस्पति-
यह क्षेत्र पहाड़ी तथा पठारी होने के कारण कृषि बहुत कम भाग में होती है. यहाँ लाल बलुई मिट्टी मिलती है. स्थानान्तरित कृषि भी यहाँ प्रचलित है. इस प्रदेश का औसत 52-47% भाग वनों में आच्छादित है. अधिकांश क्षेत्र में मिश्रित वन हैं. यहाँ उच्च साल वनों के साथ नारायणपुर, बीजापुर तथा सुकमा तहसीलों में द्वितीय श्रेणी के सागौन वन मिलते हैं. यहाँ उष्ण आई पर्णपाती व उष्ण शुष्क पर्णपाती दोनों ही प्रकार के वन पाए जाते हैं. यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न है. यहाँ विविध प्रकार के औषधि गुणों के पौधों के साथ वन्य प्राणी भी बहुलता में मिलते हैं.
उपज तथा खनिज-
बस्तर प्रदेश की किसी भी तहसील का अधिक भाग कृषि के अन्तर्गत नहीं है. अधिकतम कृषि प्रदेश जगदलपुर तहसील में 93.3% मिलता है, चावल यहाँ की प्रमुख फसल है. आदिवासी क्षेत्र होने के कारण मक्का, कुलथी, कोदो, कुटकी आदि की भी पैदावार होती है. अन्य फसलों में गेहूँ, ज्वार, अरहर, उड़द, चना, तिलहन आदि हैं.
खनिज की दृष्टि से बस्तर धनी प्रदेश है. कोरंडम, किम्बरलाइट, सिलीमेनाइट, माइका, बॉक्साइट, लौह अयस्क, सीसा तथा चूने का पत्थर इस क्षेत्र के प्रमुख खनिज हैं. बैलाडिला, चरगांवा, कोड़ा, रावघाट, अहनदी आदि प्रमुख लौह अयस्क भण्डार हैं.