लिंगागिरी विद्रोह (1856-57 ई.)
महान् मुक्ति संग्राम की लपटें: लिंगागिरी विद्रोह (1856-57 ई.)
इस नए शासन से न तो राजा भैरमदेव प्रसन्न थे, न उसके दीवान दलगंजनसिंह और न ही यहाँ की आदिवासी जनता. मार्च 1856 ई. के अन्त तक दक्षिण बस्तर में आन्दोलन तीब्र गति पर था. 50 वर्गमील क्षेत्र में फैले हुए लिंगागिरि तालुक की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस तालुक के तालुकेदार धुर्वाराव माड़िया जनजाति का था, उसने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया. उसने बस्तर के राजा भैरमदेव से भी निवेदन किया कि वह भी गैरकानूनी सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दें. भैरमदेव तो वैसा नहीं कर सके, किन्तु विद्रोहियों की उन्होंने पूरी सहायता की.