मल्हार नगर का परिचय [Introduction to Malhar Nagar]
मल्हार नगर का परिचय [Introduction to Malhar Nagar]
मल्हार (ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक एवं प्राचीन राजधानी)
यह स्थान बिलासपुर के दक्षिण-पश्चिम में विलासपुर से रायगढ़ जाने वाले सड़क मार्ग पर मस्तूरी से लगभग 14 किमी की दूरी पर स्थित है. यहाँ सागर विश्वविद्यालय एवं पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन कार्यों से इस स्थल की प्राचीनता एवं यहाँ के प्राचीन वैभवशाली संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई है जिसमें यहाँ ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक का क्रमवद्ध इतिहास प्रमाणित हुआ है.
कल्चुरी पृथ्वी देव द्वितीय के शिलालेख में इसका प्राचीन नाम मल्लाल दिया गया है. 1167 ई. का अन्य कल्चुरी शिलालेख इसका नाम मल्लालपत्तन प्रदर्शित करता है, प्रो. के.डी. बाजपेई एवं डॉ. एस.के. पांडे के अनुसार मल्लाल सम्भवतः मल्लारी से बना है, जो भगवान् शिव की एक संज्ञा थी. पुराणें में मल्लासुर नामक एक असुर का नाम मिलता है. उसके नाशक शिव को मल्लारी कहा गया है.
प्राचीन छत्तीसगढ़ अंचल में शिव पूजा के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हो चुके हैं. छत्तीसगढ़ का मल्लालपत्तन तीन नदियों से घिरा हुआ था-पश्चिम में अरपा, पूर्व में लीलागर एवं दक्षिण में शिवनाव. कल्चुरी शासकों से पहले इस क्षेत्र में कई अभिलेखों में शरभपुर राजवंश के शासन का उल्लेख मिलता है. अतः खननकर्ता प्रो. वाजपेई एवं डॉ. पाण्डेय इसे ही प्राचीन राजधानी शरभपुर मानते हैं. बाद के शासनकाल में मल्लारी से मल्लाल एवं फिर आधुनिक नाम मल्हार हो गया.
ऐतिहासिकता
प्रो. वाजपेई एवं डॉ. पांडे के विवरण के अनुसार यहाँ उत्खनन 1975 से 1978 तक किया गया जिसके आधार पर इसे पाँच कालक्रमों में बाँटा गया-
(1) उत्तर वैदिक, बुद्ध एवं प्राक् मौर्य काल (1000 ई. पूर्व से 325 ई. पूर्व)
लौह युग के आरम्भ के आसपास से मौर्य युग के पहले तक के इस काल के काले एवं लाल रंग के मिट्टी के पात्र एवं ठीकरे मिलते हैं तथा मकानों के अवशेषों में फर्श में बजरी की मिलावट है.
(2) मोर्य, सातवाहन एवं कुपाण युग (ईसा पूर्व 325 से 300 ई. तक)-
इस काल में भी विभिन्न मिट्टी के पात्र तथा सिक्के मिले हैं जिन पर हाथी अंकित हैं ये सातवाहन काल के हैं. दो पकी हुई मिट्टी की मोहरें भी मिली हैं जिन पर ‘गामस कोसलिया’ एवं ‘वेद श्री’ लिखा हुआ है. प्राप्त मकान बिना तराशे हुये पत्थरों के बने हैं. मौर्यकाल की ईंटों की दीवार भी मिली है.
(3) शरभपुरीय एवं सोमवंशी शासकों का युग (ई. 300 से 650 तक)
इस काल के भी मिट्टी के विभिन्न पात्र पाये गये हैं कुछ पर अलंकरण भी किया गया है. खेलने के पाये, मिट्टी की मुद्रा, कीमती पत्थरों के नग भी मिले हैं. दैनिक उपयोग की भी वस्तुएं पाई गई हैं. प्राप्त मंदिरों में 6वीं-7वीं सदी के शिव मंदिर, बौद्ध मंदिर तथा चैत्य के अवशेष प्राप्त हुये हैं.
(4) परवर्ती सोमवंशियों का युग (ई. 650 से 900 तक)
इस युग के मिट्टी के पात्र विशेष प्रकार के हैं जिन पर ठप्पों से बना अलंकरण एव स्वर्ण लेप है. साधारणतः इन पात्रों पर अभ्रक का लेप है एवं ये लाल रंग के हैं. इस समय की लोहे की कीलें पत्थर बहुत सी ऐसी मिट्टी की मुहरें प्राप्त हुई हैं, जो बौद्ध मंत्रों से अभिलिखित हैं, पकी ईंटों के भवन तथा तराशे हुये पत्थरों के भवन भी मिले हैं. इस काल के ऐसे पत्थर के कुंड भी मिले हैं जिनमें पशुओं को पानी पिलाया जाता रहा होगा.
(5) कल्चुरी शासकों का युग (ई. 900 से ई. 1300 तक)
इस युग में लाल रंग के मिट्टी के पात्र बहुतायत से पाये गये हैं. इस समय प्याले, दीपक, कटोरे आदि बहुत बने. इस काल की काँच की चूड़ियाँ भी अधिक मात्रा में पाई गई. कलचुरी शासकों के कई सिक्के भी उपलब्ध हुये हैं. जो भवन यहाँ पाये गये हैं, उनका निर्माण ईंटों तथा पत्थरों का है. इस शासनकाल में बहुत से मंदिर भी बनवाये गये थे, जो मंदिर प्राप्त हुये हैं उनमें केदारेश्वर मंदिर एवं डिडिन दाई मंदिर इसके प्रमाण हैं. अतः कल्चुरी शासकों ने अपने समय में यहाँ उत्कृष्ट मंदिरों एवं मूर्तियों का निर्माण करवाया है. इस क्षेत्र में बहुत से प्राचीन कुओं के अवशेष आज भी प्राप्त होते हैं,
आर्थिक स्थिति
मल्हार प्राचीनकाल में सम्पन्न स्थिति में था. यहाँ से प्राप्त रोमन सिक्कों के आधार पर माना जा सकता है कि यहाँ से विदेशी व्यापार भी अवश्य सम्बन्धित रहा होगा. शरभपुरीय एवं कल्चुरी राजाओं के समय की स्वर्ण मुद्राएं भी इसकी आर्थिक सम्पन्नता को प्रमाणित करती हैं. लगभग इस काल के प्रचलित सभी धर्मों से सम्बन्धित मूर्तियों एवं सामग्रियों का पाया जाना यहाँ के शासकों की धार्मिक सहिष्णुता एवं सभी धर्मों के प्रति समभाव को प्रमाणित करता है.
दर्शनीय स्थल-
मल्हार में प्राचीनता के अनुरूप दर्शनीय ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों का बाहुल्य है. उत्खनन में प्राप्त सामग्री यहाँ संग्रहालय, जो केन्द्रीय पुरातात्विक विभाग द्वारा संचालित हैं, में भी संग्रहीत हैं. पातालेश्वर केदार मंदिर (दसवीं- ग्यारहवीं सदी), डिडनेश्वरी मंदिर (कल्चुरीकालीन), देउर मंदिर (शिव प्रतिमा) आदि दर्शनीय स्थल हैं.