हल्बा विद्रोह (1774-79 ई.) तथा चालुक्य राज का पतन
हल्बा विद्रोह (1774-79 ई.) तथा चालुक्य राज का पतन
डोंगर वह क्षेत्र है जहाँ हल्वा क्रान्ति प्रारम्भ हुई थी. चालुक्य हल्वा क्रान्ति को कभी रोक नहीं पाये और जब उन्होंने ऐसा प्रयास किया, तो चालुक्य शासन का पतन हो गया. राज्य की स्वतन्त्रता छिन गई और वे कम्पनी सरकार के षड्यन्त्र से मराठों के पराधीन हो गये. डोंगर में हल्बा विद्रोह कई कारणों से भड़का था. इसमें भौगोलिक सीमा, अनिश्चित वर्षा, आवागमन के कठिन साधन तथा कृषि योग्य सीमित भूमि प्रमुख कारण रहे हैं. सन् 1774 ई. में हल्बा विद्रोह डोंगर में अल्प परिणाम में प्रारम्भ हुआ. कई स्थितियाँ और विभिन्न परिस्थितियों के कारण उसकी उन्नति हुई.
सन् 1777 में अजमेरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसकी हल्बा सेना को बर्बरता के साथ मौत के घाट उतार दिया गया एवं कुटिलता से समस्त हल्बाओं को मार डाला गया. केवल एक हल्वा अपनी जान बचा सका. इतना बड़ा नरसंहार विश्व के इतिहास में कभी नहीं हुआ, जहाँ पूरी जनजाति का ही सफाया कर दिया गया हो. इस प्रकार अजमेरसिंह की और हल्वा क्रान्ति के पतन को बस्तर में चालुक्य राजाओं की समाप्ति माना जा सकता है. इसी के साथ बस्तर भोंसलों के अधीन हो गया और बस्तर में चालुक्य वंश का राज्य समाप्त हो गया.