आदिवासी समाज सुधारक गहिरा गुरु
आदिवासी समाज सुधारक गहिरा गुरु
छत्तीसगढ़ क्षेत्र के आदिवासियों को शोषण, भ्रष्टाचार से मुक्त कराने तथा आदिवासी समाज में सुधार करने के लिये यहाँ की पावन भूमि पर गहिरा गुरु का जन्म रायगढ़ जिले के घरघोड़ा तहसील में लैलूंगा के निकट गहिरा ग्राम में हुआ था. सन् 1905 में श्रावण मास की अमावस्या की रात्रि में गर्जना के साथ बुड़गी कंबर के घर बालक रामेश्वर का जन्म हुआ. बाल्यावस्था से ही बालक रामेश्वर अध्यात्मिक प्रवृत्ति का था. अपने व्यवहार और निष्कपट प्रवृत्ति के कारण आसपास के क्षेत्र में वे गुरुजी कहलाने लगे एवं धीरे-धीरे असली नाम लुप्त होता गया और वे ‘गहिरा-गुरु’ कहलाने लगे. गहिरा-गुरु जनजातियों की दयनीय दशा से दुःखित थे. इन्होंने जनजातियों को उन्हीं के वातावरण में उन्हें स्वावलम्बी बनाने का प्रयत्न किया तथा उनकी अज्ञानता, असभ्यता को दूर करने के लिये कृत संकल्प हुये. सनातन संस्कृति के अनुरूप सत्य, शांति, दया, क्षमा धारण करने तथा चोरी, हत्या, मिथ्या त्याग करने का उपदेश दिया.
आदिवासियों की सेवा
उरांव, कंवर, मुंडा, कोरवा सभी वनवासी जातियाँ उन्हें पूज्य मानती हैं. गहिरा-गुरु ने जिस काल में आदिवासियों के जीवन में सुधार हेतु सामाजिक क्रांति लाने का प्रयत्न आरम्भ किया था, वह काल ब्रिटिश दासता का था. गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन से वे परिचित थे. सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की गूंज लैलूंगा के गहिरा ग्राम में भी सुनाई पड़ी. गहिरा गुरु इस आंदोलन में भाग लेने हेतु अपने गाँव गहिरा से पैदल रायगढ़ पहुँचे. वे गांधीजी को आंदोलन में सहयोग देने हेतु उनसे मिलना चाहते थे, किन्तु जब उन्हें गाँधी सहित सभी शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो उन्हें अत्यंत क्षोभ हुआ और वे रायगढ़ से लौटकर गहिरा आ गये. उन्होंने इस आंदोलन से पूर्व गांधीजी से मुलाकात की थी. वे कई बार गांधीजी से मिलने साबरमती आश्रम जा चुके थे. वे गांधीजी को सादगी एवं अनुशासन प्रियता देखकर अत्यंत प्रभावित हुये थे. गांधीजी ने उन्हें सेवा धर्म के पालन करने का उपदेश दिया था, तभी से गुरु ने अपना जीवन आदिवासियों के जीवन में सुधार लाने हेतु लगा दिया था.
स्वतंत्रता आन्दोलन में हिस्सा
1946 में गुरु पुनः गांधीजी से मिलने गये. उस समय तक देश का विभाजन तय हो चुका था. सम्पूर्ण देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे जोरों पर थे. इसी अवसर पर हिन्दू मुस्लिम एकता का संदेश गांधी द्वारा घूम घूम कर दिया जा रहा था. गांधीजी जब दंगा पीड़ितों से मिलने नोवाखाली (असम) गये थे उस समय गहिरा-गुरु भी वहाँ उनके साथ थे और दंगाइयों के बीच जाकर उन्हें रोकने की दिशा में उन्हें सहयोग कर रहे थे. भारत विभाजन के साथ स्वतंत्र हुआ तब उन्हें पीड़ा हुई थी, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति पर संतोष भी था.
स्वतंत्रता के पश्चात उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन पीड़ित मानवता की सेवा एवं कमजोरों के उत्थान में लगा दिया. गहिरा- गुरु देश की पराभूत अवस्था से विचलित हो स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. मानव सेवा ही उनका धर्म था और उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आदिवासियों के उत्थान में लगा दिया. समाज कल्याण हेतु संघर्ष करते हुए 21 नवम्बर, 1996 को 92 वर्ष की आयु में गहिरा गुरु का देहावसान हो गया. अपने देश प्रेम, कर्मठता, ईमानदारी एवं सेवाधर्म के कारण आज भी वे हमारे बीच प्रेरणा स्रोत बने हुवे हैं.