छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक परिचय
छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक परिचय
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- छत्तीसगढ़ प्राचीन कला, सभ्यता, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है।
- यहां ऐसे भी प्रमाण मिले हैं जिससे यह पता चलता है कि श्रीराम की माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की ही थी।
- सिरपुर की ऐतिहासिकता बौद्ध आश्रम, रामगिरी पर्वत, चित्रकूट, भोरमदेव मंदिर, सीताबेंगरा गुफा स्थित जैसी अद्वितीय कलात्मक विरासतें छत्तीसगढ़ को आज अंतरराष्ट्रीय पहचान प्रदान कर रही है।
- छत्तीसगढ़ के गौरवशाली अतीत के परिचालक कुलेश्वर मंदिर राजिम, शिव मंदिर चन्दखुरी, सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, आनंद प्रभु कुरी विहार और स्वहितक बिहार सिरपुर, जगन्नाथ मंदिर खल्लारी, भोरमदेव मंदिर कवर्धा,बत्तीस मंदिर बारसूर और महामाया मंदिर रतनपुर सहित पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण 58 स्मारक घोषित किए गए हैं।
- छत्तीसगढ़ के विकास के साथ ही छत्तीसगढ़ भाषा के विकास का मार्ग भी प्रशस्त किया गया है। छत्तीसगढ़ को राजभाषा का दर्जा दिया गया और छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का गठन किया गया ताकि छत्तीसगढ़ में सरकारी कामकाज हो
- संस्कृति मंत्री के प्रयासों से छत्तीसगढ़ विधानसभा कुंभ मेला विधेयक 2005 पारित होने के बाद से छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम में आयोजित विशाल मेला पांचवे कुंभ के रूप में अपनी राष्ट्रीय ही न हीं,बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है।
- सिरपुर में 1956 के बाद 2006 में पुनः पुरातात्विक उत्खनन प्रारंभ कराया गया जिससे 32 प्राचीन टीलों पर अत्यंत प्राचीन संरचनाएं प्रकाश में आईं।
- उत्खनन के दौरान पहली बार मौर्य कालीन बौद्ध स्तूप प्राप्त हुए। 79 कांस्य प्रतिमाएं और सोमवंशी शासक तीवरदेव का एक तथा महाशिव गुप्त बालार्जुन के तीन ताम्रपत्र सेट मिले।
- राजधानी रायपुर में भव्य पुरखौती मुक्तांगन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम से उसका लोकार्पण कराया गया है।
- कलाकारों की पहचान व सम्मान के लिए चिन्हारी कार्यक्रम शुरू किया गया है। कलाकारों व साहित्यकारों के लिए पेंशन राशि को 700 रुपए से बढ़ाकर 1500 रुपए किया गया है।
- विवेकानंद प्रबुद्ध संस्थान और छत्तीसगढ़ सिंधी साहित्य संस्थान का गठन किया गया है।