छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के कलाकार
छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति
छत्तीसगढ़ व्यापक रूप से गाँवों, कस्बों का प्रदेश है. यहाँ की संस्कृति को लोक संस्कृति के रूप में देखना ही अधिक सार्थक है. छत्तीसगढ़ की संस्कृति ‘लोक’ की संस्कृति है, जो जनजातीय भू भागों में अपनी पृथक् सांस्कृतिक अस्मिता के साथ संरक्षित है. इसके आचार-विचार, रीति-रिवाज, पर्वोत्सव, मूल्य और मान्यताएँ, जीवन-शैली, भाषा, कथाएँ, लोक गाथाएँ, लोकनृत्य, लोकगीत, लोक संगीत, लोक नाट्य, लोकाचरण, लोक देवता, लोक शिल्प और लोक चित्रकला का विराट संसार है, जो समष्टि रूप में इस प्रदेश की समग्र वृहत्तम संस्कृति है.

विकास की दृष्टि से भले ही छत्तीसगढ़ प्रथम पंक्तियों में न गिना जाए, किन्तु सांस्कृतिक रूप से यह अंचल निःसंदेहसम्पन्न है. दया, क्षमा, ममता, सरलता एवं औदार्य यहाँ के लोगों के प्रमुख गुण हैं. छत्तीसगढ़ अनेक संस्कृतियों को पोषण देता रहा है, जहाँ तक उसकी अपनी संस्कृति का प्रश्न है, वह अपनी आदिम विशेषताओं से अभी भी जुड़ा हुआ है, यहाँ के अधिकांश निवासी प्रकृति पर आस्था रखते हैं, पर सच तो यह है कि श्रम और ईमान से बढ़कर इनका कोई देवता नहीं है. परन्तु तेजी से बदलते आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक परिवर्तनों के कारण छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति भी प्रभावित हो रही है.
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के रेखांकन हेतु यहाँ के लोक साहित्य, विशेष कर वाचिक अर्थात् मौखिक साहित्य का अन्वेषण आवश्यक है, क्योंकि इसी में आदि काल से लेकर आज तक यहाँ की संस्कृति के मूल तत्व विराजमान एवं प्रवाहित होकर यात्रा करते रहे हैं और आज भी विद्यमान हैं.
छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के कलाकार
दाऊ रामचन्द्र देशमुख
रामचन्द्र देशमुख छत्तीसगढ़ी कला, संस्कृति के ओर सम्पूर्ण रुप से समर्पित है। उन्होंने चंदैनी गोंदा शुरु किये और गांव गांव में गये ताकि कलाकार कवि उससे जोड़े। चंदैनी गोंदा शुरु से ही बहुत लोकप्रिय रहे। इसी मंच के कारण कितने प्रतिभाशाली व्यक्ति आगे आ पाये जैसे लक्ष्मण मस्तूरिया, खुमान साव, केदार यादव, साधना यादव, भैयालाल हेड़ाऊ और कितने कलाकार, चंदैनी गोंदा जैसे प्रस्तुति बहुत ही बिरल है। छत्तीसगढ़ के किसान के पीरा, गांव के दुख दर्द, गीत-पूरे छत्तीसगढ़ की झलक इस प्रस्तुति में दिखाते है। दाऊ रामचन्द्र देशमुख डाक्टर खुबचंद बाघेल के प्रेरणा से छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक जागरण के लिये बहुत काम कर गये है। देहाती कला विकास मंडल का स्थापना की सन 51 में और उसके माध्यम से कला को आगे बढ़ाये।
दाऊ महासिंह चन्द्राकर
महासिंह चन्द्राकर बचपन में एक राऊत कलाकार के बांस गीत से इतना प्रभावित हुये थे कि लोककला के लिए पूरी जिन्दगी काम करते रहे।
छत्तीसगढ़ी के सुवा, करमा, ददरिया जंवारा, गौरा, भोजली, पंडवानी, देवारगीत, नाचा गम्मत चन्द्रांकरजी मंच, आकाशवाणी, दूरदर्शन में प्रस्तुत करते रहे। उनका मकसद है छत्तीसगढ़ का सही रुप प्रस्तुत करे। वे सुशील यदु से बोले थे – ‘छत्तीसगढ़ी लोककला अउ लोकगाथा यादव मने के बांस गीत, देवार मन के देवार गीत, गोड़ अउ पनिका मन के परंपरागत धरोहर आय। गीत, संगीत, नाचा गम्मत में पनिका अउ देवार मन मंजे हुए कलाकार होथे। आज इनश्वर कला का समाज भुलावत जावत हे। लोककला के रुप मा विकृति आवत हे। साहित्य संगीत लोककला हा मनखे के जिनगी ला उपर उठा थे। मनखे के जिनगी के सबो रंग ला छूये। आज भी धलो बस्तर के आदिवासी स्री पुरुष मन गुड़ी में संगे नाचा गाना करथे। वोमा विकृति नइ आवन दे हवें।’ सुशील यदु ‘छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार’ – प्रकाशक: छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति ।
दुलारसिंह मंदराजी
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अन्चलों में नाचा लोक संस्कृति का आधार है। दुलार सिंह मंदराजी को छत्तीसगढ़ी नाचा के भीष्म पितामह कहा जाता है।
उत्तरप्रदेश में नौंटकी का जो स्थान है, महाराष्ट्र में तमाशा का, बंगाल में यात्रा का, और छत्तीसगढ़ में नाचा का वही स्थान है।
दुलारसिंह जब छोटे थे, नाचा गम्मत विलासिता के साधन हो जा रहा था। दुलारसिंहजी अपने गांव रेवली में नाच को परिमार्जित करने को ठान ली। धीरे-धीरे नाच लोकप्रिय होने लगे और नाचा को मंच में सम्मान मिलने लगा। रवेली साज के प्रदर्शन रायपुर दुरुग, बस्तर, टाटानगर, रायगढ़ सभी जगह होने लगी।
अपनी पूरी जिन्दगी दुलारसिंह नाचा के सेवा में अर्पित कर दी। अपनी जिन्दगी के आखरी समय दुलारसिंह गुमनामी और गरीबी को भोगकर विदा लिये इस दुनिया से। अभी रवेली में उनकी मूर्ति स्थापित की गई है।
फिदाबाई मरकाम
फिदाबाई मरकाम नाचा के बहुत बड़ी कलाकार है। बहुत अच्छी गायिका और नर्तकी है फिदाबाई। देवार होने के नाते कलाकारी तो उनके खून में थी। फिदाबाई अनेक जगहों में अपनी कारिग्रम दी है। कई बार विदेशों में अपना कारिग्रम लेकर गई है। जैसे फ्रांस, जर्मनी, सोवियत रुस, इंग्लैंड, यूगोस्लाविया, स्काटलैण्ड, डेनमार्क।
नाचा के प्रसिद्ध कलाकार लालू को फिदाबाई को नाचा के दुनिया में लाने का श्रेय जाता है। दुलारसिंह मंदराजी के रेवली साज में फिदाबाई काम शुरु की। लालू, मदन, निषाद उन्हें तालिम दी। हबीब तनवीर के थियेटर में प्रवेश की फिदाबाई। रंगमंच के दुनिया में उन्हें बहुत नाम हुआ। बहुत सारे नाटकों में मुख्य भूमिका अदा की है जैसे चरनदास चोर, आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी, बहादुर कलारिन, लाला शोहरत राय। 1988 में फिदाबाई मरकाम को म.प्र. आदिवासी लोककला ने तुलसी सम्मान से सम्मानित की।
देवदास बंजारे
देवदास बंजारे छत्तीसगढ़ के पंथी नर्तक है। देश विदेश में पंथी नृत्य को स्थापित इन्होंने ही किया। जब स्कूल में पढ़ते थे, तब कबड्डी के नामी खिलाड़ी थे। पंथी नाच से इन्हें इतना प्रोत्साहन मिला कि वे लोकनृत्य के क्षेत्र में आये। हबीब तनवीर के नया थियेटर में उनका चयन होने बाद कई बार विदेशो की यात्रा करके वहाँ पंथी कारिक्रम प्रस्तुत की। उन्हें 1972 में मुख्यमंत्री से स्वर्णपदक एवं 1975 में राष्ट्रपति से स्वर्णपदक मिली। उन्हें और भी कई बार सम्मानित किया गया है।
सुरुजबाई खाण्डे
भरथरी, छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोकगीत कला, में सुरुजबाई खाण्डे का नाम बहुत ही महत्व रखता है। वे भरथरी गायिकी में पहली दर्जे के गायिका है। छत्तीसगढ़ी भरथरी चंदैनी और ढोला-मारु के गायिकी के छाप देश-विदेश में स्थापित की। रेडियो-दूरदर्शन में उनके गायन प्रसारन होते रहते है। हबीब तनबीर के साथ कई शहरों में कारिक्रम प्रस्तुत की है सुरुजबाई खाण्डे।
छत्तीसगढ़ में नाचा के कलाकारों में पहला दर्जे के है लालुराम, मदन निषाद, ठाकुरराम, भुलवा, गोविन्दराम निर्मलकार, निहाईकदास, झुमुकदास। मदन निषाद को छत्तीसगढ़ी नाचा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है। दुलारसिंह जी के रवेली साज और श्याम बेनेगल उनके जिन्दगी के एक महत्वपूर्ण घटना रही और उसके बाद उन्हें तुलसी सम्मान से सम्मानित किया गया। रवेली साज में उनकी नाचा जिन्दगी शुरु हुई और लालुराम और ठाकुरराम के संग नाचा को बेहतरिन से बेहतरिन करते गये। हबीब तनवीर के नया थियेटर में मदन निषाद मिट्टी की गाड़ी, चरनदास चोर, गांव के नांव ससुराल, आगरा बाजार में हमेशा मुख्य भूमिका निभाई। श्याम बेनेगल की फिल्म चरनदास चोर में काम की, और श्याम-किशन कि फिल्म मैसी साहब में भी।
गोविंद निर्मलकर को मदन निषाद से प्रेरणा मिली थी। मोहारा गावं में पैदा हुये थे गोविन्द जी और बचपन से मोहारा के प्रसिद्ध नाचा कलाकार मदन निषाद के प्रोत्साहन से वे बी नाचा के दुनिया में आये। शुरु में वे मंजीरा, ढोलक बजाते थे। बाद में रवेली और रिगंनी नाच पार्टी के मुख्य कलाकार बने। हबीब तनबीर के साथ 1973 में जुड़े और मिट्टी की गाड़ी, आगरा बाजार, गांव के नाव ससुरार, उत्तम राम चरित्र में काम करके कितनों को हँसाया, रुलाया। उन्हें तुलसी सम्मान से सम्मानित किया गया है।
मानदास टंडन –
बहुत ही बड़े लोक कलाकार और गायक रहे है। जब चिकारा लेकर खड़े गाते है, तो लगता है कि यही है सच्चे अर्थ में लोक गायक। बचपन में नाचा देखकर उनके मन में कलाकार बनने की इच्छा हुई थी। गुरु घासीदास बाबा को आदर्श मानते है।
झुमुकदास बघेल व निहाईकदास बघेल –
ग्यारह साल के उम्र से नाचा मंडली में काम करते रहे है। बहुत ही अच्छे कलाकार है। उनकी दादी दुकालाबाई के प्रेरणा से वे नाचा के दुनिया में आये। झुमुकदास के पिता जगेसर बघेल भी नाचा के कलाकार रहे, जिन्होंने उन्हें लगातार प्रोत्साहन देते रहे।
छत्तीसगढ़ के नाचा पार्ची में रवेली नाच, नदगइहा नाचा पार्टी, रिगंनी साज, खल्लारी नाचा, रायरवेड़ा नाच, फ्लारी नाच, श्री सत्य कबीर नाचा पार्टी मटेवा (अर्जुन्दा) प्रमुख है।
श्री सत्य कबीर नाचा पार्टी के मुख्य कलाकार है झुमुकदास बघेल और निहाईकदास बघेल। निहाईकदास इस नाचा पार्ची के संचालक भी है। कबीर के बानी को अपना आदर्श माननेवाले निहाईकदास मटेवा में बचपन से ही नाचा मंडली में थे। उन्हें प्रेरणा मिली उनके पिता संतोषदास मानिकपुरी से और नाचा कलाकार लुकउदास से।
निहाईकदास और झुमुकदास साथ-साथ बहुत सालों से काम करते चले आ रहे है। निहाईकदास जी ने सुशील यदु से कहा – ‘छत्तीसगढ़ लोककला के तभे विकास होही जब कलाकार मन के मनोबल बाढ़ही। छत्तीसगढ़ के माटी के खुशबू में कला के बास थे।’
चिन्तादास बंजारे-
चिन्तादास बंजारे छत्तीसगढ़ के चंदैनी गायक हैं जिन्हें लोक बार बार सुनना चाहते है। छत्तीसगढ़ी लोककला में चंदैनी का बहुत महत्व है। बांस गीत, देवार गीत, भरथरी जैसे। चंदैनी गीत लोरिक चंदा के प्रेम गाथा है, लोक-कलाकारों ने अपने गीत और नृत्य के माध्यम से गाथाओं को जीवित रखा है। चिन्तादास बंजारे के गुरु रहे है सदानंद बंधे, चिन्तादास बंजारे ने चंदैनी नाम से चंदैनी पार्टी बनाकर यह लोकगाथा को लेकर पूरे देश में भ्रमन किये है। आकाशवाणी में कई बार उनकी रिकार्डिग हुई है। चिन्तादास बंजारे चंदैनी के लोक कलाकार, सुखचंद सोनी बरोंडा को अपना आदर्श मानते है।
केदार यादव-
केदार यादव के गीत आज भी छत्तीसगढ़ मे बजते रहते है और याद दिलाते है कि कितने बेहतरीन लोकगायक थे। 1996 में उनकी मृत्यु हो गई। दुर्ग में पले बड़े केदार यादव दुर्ग में ही आखरी सांस ली। उनकी गीत ‘जागौ जागौ रे मोर भइया’, ‘का तैं मोला मोहनी डार दिये गोंदाफूल’, तोर नैना के लागे हे कटार, छत्तीसगढ़ में खूब बजते है। केदार यादव बहुत से कवियों के गीत गाते थे जैसे हरि ठाकुर, बद्री विशाल परमानंद, रामेश्वर वैष्णव।
खुमान साव-
खुमान साव रवेली नाचा पार्टी में हारमोनियम बजाते थे। दुलारसिंह मदराजी से उन्होंने बहुत कुछ सिखी। उसके बाद रामचन्द्र देशमुख के चंदैनी गोंदा में रहकर अपने प्रतिभा को आगे बढ़ाया। छत्तीसगढ़ के कितने कवियों के गीतों को संगीतबद्ध करके खुमान साव लोगों तक पहुँचाये। उनके गीत लोग गाते है जैसे मोर संग चलव रे, धन-धन रे मोर किसान, छन्नर छन्नर पैरी बाजे।
किस्मत बाई देवार –
बचपन से संगीत के साथ जुड़े हुये है। देवार कलाकारों को पहले जमाने में राजदरबार में राजकलाकारों की पदवी मिलते थे, देवार महिला कलाकारों में किस्मत बाई, बरतरीन बाई, फिदाबाई बासंती और पद्मा देवार प्रसिद्ध है। बरतीन बाई से उन्हें प्रशिक्षण मिली। आदर्श देवार पार्टी के नाम से एक मंडली बनाकर कार्यक्रम देती रही। हारमोनियम में मोहन, मांदर में गणेशराम मरकाम, ढोलक में चन्द्रभान तेलासी। रामचन्द्र देशमुख के चंदैनी गोंदा में किस्मत बाई अपनी प्रतिभा से जगह बनाई थी। हबीब तनबीर के मिट्टी के गाड़ी, चरनदास चोर, मोर नाव दमाद गावं के नाव ससुराल में किस्मत बाई थी।
जंयती देवार –
को छत्तीसगढ़ कंठ कोकिला के उपाधि से सन् 1947 में सम्मानित किया गया था। यह उपाधि भिलाई इस्पात संयंत्र ने दी थी। जंयती यादव के पिता समयलाल मरकाम नाचा के माहिर कलाकार थे। उनसे जयंती यादव को प्रेरणा मिली थी। दुलारसिंह मंदराजी के रेवली साज से कारिग्रम देती रही जंयतीजी ने। जहाँ उन्होंने बहुत कुछ पाया। हबीब तनबीर के आगरा बाजार, चोर चरनदास, गांव के नया ससुरार इत्यादि में काम की। उनके आदर्श गीतकार जिनके गीत वे गाते है, वे है – बद्रीविशाल परमानन्द, मुरली चन्द्राकर, हेमनाथ वर्मा, शेख मन्नान।
साधना यादव –
चंदैनी गोंदा में अपनी प्रतिमा के कारण गाती थी यद्यपि उन्हें कही से गीत सिखने का अवसर नहीं मिला थी। खुद अभ्यास करती थी रोज। संगीत उनका जीवन है। साधना यादव के गाये गीत जैसे तुकके मारे रे नैना के बान बैरी, बाग बगइचा दिखे ला हरियर, पिरित लागे कसर लागे बहुत लोकप्रिय गीत है। उनके कई रेकार्ड और कैसेट निकल चुके है। उनकी सांस्कृतिक संध्या नवा बिहान छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के बाहर प्रोग्राम देते रहे है।
रेखा जलक्षत्री –
भरथरी गायिका है और उनका गाने का अंदाज भी बहुत निराला है। बचपन से गाती रही रेखा जी और भरथरी गाने की प्रेरणा उन्हें अपने पिता मेहतर लाला वैद्य से मिली जो खुद एक अच्छे लोक कलाकार रहे है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से रेखा जलक्षत्री का कारिक्रम प्रसार किया गया है। दिल्ली के संगीत नाटक अकादमी में रेखाजी कई बार प्रोग्राम दे चुकी है।
बासंती देवार –
चंदैनी गोंदा में अपनी जिन्दगी शुरु की थी। उनके गीत बहुत ही लोकप्रिय है ” आंखी मा गड़ि जाय बैरी जवानी” और ” लचकदार कनिहा मैं जावं कइसे पनिया” जैसे गीत बहुत लोकप्रिय है। किसमत बाई देवार से गीत संगीत और कलाकारी सिखी थी बासंती जी। बहुत जगह अपना कारिक्रम देती रही है। उन्हें कई उपाधियों से सम्मानित किया गया है। उनकी कैसेट भी निकली है। उनके पिता गणेशराम मरकाम जी कलाकार थे।
गंगाराम शिवारे –
के गीत, जो वे खुद रचते है, खूब अच्छे है। संत रविदास को अपना आदर्श मानते है। बचपन से उन्हें गीत संगीत में रुचि होने के कारन वे उसी दिशा में चलते रहे। उनका गुरु झाडूराम तिलवार है। तुलसी चौरा नाम से छत्तीसगढ़ी मंडली तैयार की है गंगारामजी ने। उनके गीत, ‘मोर छत्तीसगढ़ महतारी के पाइंया लागंव रे’ बहुत प्रसिद्ध है। हबीब तनबीर के चरणदास चोर और बहादुर कलारिन में काम किये है। बहादुर कलारिन के गीत उनकी लिकी हुई है। अब गंगाराम शिवारे इस दुनिया में नहीं रहे।
भैयालाल हेड़ाऊ –
भैयालाल हेड़ाऊ एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ गायक एवं उद्घोषक भी है। सन् 1981 में हेड़ाऊजी सत्यजीत रे के टेलीफिल्म सद्गति में अभिनय की। भैयालाल हेड़ाऊ के पिता वासुदेव हेड़ाऊ एक बहुत अच्छे कलाकार थे। घर के वातावरण मेे ही कलाकारी थी। बचपन से वे गीत गाते रहे। भैयालाल हेड़ाऊ 1971 में चंदैनी गोंदा के साथ जुड़े और बाद में सोनहा बिहान, नवाविहान, अनुराग धारा छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंडली में गाते रहे, अभिनय करते रहे। उन्हें बहुत बार सम्मानित किया गया है।
धुरवाराम मरकाम –
एक ऐसे लोक गायक है जिनके गीत बचपन से ही लोगों को प्रभावित की थी। बचपन में वे बांस के टुकना बनाया करते थे और बनाते बनाते गाते रहते थे। उन्हें प्रेरणा मिली थी अपने पिता छितकूराम मरकाम से। तथा रामलाल मरकाम और मिनलाल मरकाम से। उनकी पत्नी थी लोक गायिका दुखियाबाई। धुरवाराम मरकाम और दुखियाबाई मरकाम हबीब तनबीर के नया थियेटर में काम किये थे। पति पत्नी, वे दोेनों छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक पार्टी ” मया के फूल” का निर्माण किये। दोनों के गीत आकाशवाणी में बजते है और कैसेट भी निकले है। दुखियाबाई के देहान्त के बाद धुरावाराम मरकाम अकेले हो गये। पर वे अब भी गाते रहते है, लोगों को आनन्द देते रहते है।
पंचराम मिरझा और कुलवन्तिन बाई –
छत्तीसगढ़ी गीत रेडियो में गाते है और लोकप्रिय है। पति पत्नी दोनों मंच में कारिक्रम देते है। उनके ‘अंजोरी रात’ नाम के छत्तीसगढ़ी गीत संगीत के मंडली के माध्यम से और अनेक कलाकार सामने आये। आकाशवाणी में दोनों गाते है एवं उसके कैसेट भी है उनके गीत के।
निर्मला ठाकुर और ननकी ठाकुर –
और एक छत्तीसगढ़ी दम्पत्ति है जिनके गाये लोकगीत बहुत ही जनप्रिय है। निर्मला ठाकुर को प्रेरणा उनके पिता परदेशीराम बेलचन्दन से मिली। महासिंह चन्द्राकर के सोनहा बिहान के गायिका के रुप में उनकी शुरुआत हुई थी। इसके बाद केदार यादव के नवा बिहान और भुइंया के भगवान छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंडली से वे जुड़े। ननकी ठाकुर के पिता रामसिंह ठाकुर और बड़े भाई भी कलाकार रहे। ननकी ठाकुर रामायण के जानेमाने टीकाकार है। गायक होने के साथ वे अच्छे तबला वादक भी है।
कौशल देवार –
देवार गाथा को गाने वाले और र्रूंझू बजानेवाले दोनों है। देवार जात के है इसीलिये उनके रग रग में कलाकारी के गुन है। बचपन से वे र्रूंझू बजाकर देवार गीत गाते है। वे मुख्य रुप से जो गाते है – नगेसर रानी, रतनपुर के किस्सा, मेकाइन के किस्सा, चंदा गहिरीन के गाथा, हीराखान क्षत्री (गोंडराजा) के गाथा, दसमत ओड़नीन के किस्सा, सीताराम बैपारी के किस्सा, गोंडवानी गाथा। वे देवारजाति आदर्श लोककला मंडली के साथ अनेक जगह जाकर कारिग्रम किये है।
शेख हुसैन –
के गाये हुये छत्तीसगढ़ी गीत बहुत ही लोकप्रिय थे जैसे ” गुलगुल भजिया खाले के धूम मचे रहिस” , ” एक पइसा के भाजी ला” । एक समय था जब उनके गीत गांव में बजते रहते थे। आज भी आकाशवाणी से प्रसारन होते रहते है उनके गीत।
फाग गीत में अरुण यादव एक जाने माने नाम है जिनके गीत अनेकों को आनन्द दिये है। फागुन में अरुण यादव के गाये हुये फाग गीत के कैसेट जगह-जगह में बजते रहते है। गाते है, ढोलक और बांसुरी भी बजाने में माहिर है।
परसराम यदु –
छत्तीसगढ़ी गीत गाने की प्रेरणा बचपन में ही उनके नाना-अंजोरसिंह यदु से मिली थी। अंजोरसिंह खुद एक अच्छे कलाकार थे। परसराम ‘मयारु लोककला मंच’ बनाकर इसी के माध्यम से कई जगह में कारिग्रम करते रहे है।
शिवकुमार तिवारी –
के लगभग पचास कैसेट निकल चुके है। उनके संगीत के गुरु उनके दादा आशाराम तिवारी और मंच के गुरु विजयसिंह रहे है। उनके मंडली ‘सुर सुधा’ के माध्यम से कारिग्रम देते रहते है।
मिथलेश साहू –
लोक गायाक और लोक कलाकार है। शिक्षक है वे। बचपन में रामलीला और नाचा देखकर वे प्रोत्साहित हुये थे। मदन निषाद जैसे उच्च कोटि के नाचा कलाकार के साथ काम करने का मौका मिला था उन्हें।
नवलदास मानिकपुरी –
छत्तीसगढ़ के जनप्रिय कलाकार और गायक है। बारह साल के उम्र से गा रहे है। रेडिओ दूरदर्शन मंच के माध्यम से लोगों तक पहुँच रहे है। उन्हें उनके पिता सरवनदास मानिकपुरी से प्रेरणा मिली। शुरु में वे नाचा किया करते थे। वे खुद छत्तीसगढ़ी में गीत भी लिखते है। भैयालाल हेड़ाऊ उनका आदर्श है। वे छत्तीसगढ़ी लोककला समिति भिलाई के उपाध्यक्ष है।
बैतल राम साहू –
छत्तीसगढ़ी गीत बड़े बेखूबी से गाते है। उनके गाये गीतों में काफी सारे गीत बहुत लोकप्रिय है जैसे नदिया में आवे बेला रे, जलेबी वाला आगे, मोर सारी परम पियारी गा, मोला जावन देना रे सनान ना मोर। उनके पिता रामकिशन साहू नाचा के बड़े माहिर कालकार रहे। चौदह साल के उम्र से बैतल राम साहू अपने जोगीगुफा गांव के रामायण मंडली में हारमोनियम बजाकर गाना शुरु कर दिये। बाद में छत्तीसगढ़ी गीत छत्तीसगढ़ी लोकगीत के तर्ज में बनना शुरु किये। उनके गीत सुनकर आकाशवाणी के अधिकारी बरसाती भइया उन्हें पहचान लिये। और उनके गीत प्रसारित होने लगे। उन्हें कई बार सम्मानित किया गया है।
बरसाती भइया –
उनका नाम है केसरी प्रसाद बाजपेयी। आकाशवाणी के छत्तीसगढ़ी उदधोषक बहुत ही कम है, ऐसा लोगों का मानना है। उन्होंने सन् 1950 में आकाशवाणी नागपुर में उदघोषक और आलेख लेखक के रुप में काम शुरु की। छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम को लोकप्रिय बनाने का एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्र के लोक कलाकारों को आगे लाने का श्रेय बरसाती भइया को जाता है। सन् 1964 से आकाशवाणी रायपुर में छत्तीसगढ़ी प्रसारण के मुख्य दायित्व उन्होंने सम्भाला। बहुत अच्छे कलाकार है बरसाती भइया। उन्होंने सत्यजीत रे के निर्देशित सद्गति में भी अभिनय की है।
पी. आर. उरांव –
कलाकार भी है, साथ में प्रशासनिक अधिकारी भी है। वे एक गीतकार भी है, खुद गीत लिखकर मंच में गाते है। उनकी किताब ‘गुरतुर’है छत्तीसगढ़ी गीत के संग्रह। जहाँ भी अधिकारी बनकर जाते है, वही छत्तीसगढ़ी लोककला मंडल का निर्माण जरुर करते है।
खुमान यादव –
है छत्तीसगढ़ी लोकसांस्कृतिक पार्टी ‘मांग के सिन्दूर’ के संचालक और मुख्य कलाकार। बचपन से डूंडेरा गांव के खुमान यादव सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेते रहे। गांव के रामायण पाठ और खंझेरी भजन उनके जीवन का अंश रहे। घर में उन्हें हमेशा प्रोत्साहन किया गया था। पिता बुधाराम यादव, दादा प्रेमनाथ यादव और बड़े पिताजी उधोराम यादव के प्रेरणा से कलाकार बने। वे मानते है कि अगर भाई भतीजा, अर्थात अगली पीड़ि, छत्तीसगढ़ी गीत संगीत के क्षेत्र में नहीं आये, तो लोककला का विकास होना सम्भव नहीं है।
पद्मलोचन जयसवाल –
छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंडल में भोजली के संचालक रहे है। इसी मंडल के माध्यम से न जाने कितने कलाकार सामने आये जैसे रेखा जलक्षत्री, सफरी मरकाम, भगत साहू, क्षमानिधी मिश्रा, लच्छी राम सिन्हा, कृष्ण कुमार सेन। पद्मलोचन जयसवाल बचपन से ही बड़े माहिर कलाकार रहे है और 14 नवम्बर 1969 में, जब वे हाईस्कूल में थे, तब उन्हें नेहरु बाल महोत्सव में उपराष्ट्रपति से पुरस्कार मिला था। ” भोजली छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक पार्टी” बनाकर दूर दूर कारिग्रम देते रहे।
राकेश तिवारी –
तीनों क्षेत्रों में निपुण है – छत्तीसगढ़ी गायन, अभिनय और संगीत में, कविताओं का संग्रह – ” छत्तीसगढ़ के माटी चंदन” के सम्पादक रहे है। लोक संगीत की ओर उन्हें उनके दादा लक्ष्मण तिवारी ले गये। उनके साथ बचपन में जसगीत फाग मंगली में जाया करते थे राकेश तिवारी। उनकी कई गीत, वीडियो, टेलीफिल्म आकाशवाणी, दूरदर्शन में आते रहते हैं। कई आडियो कैसेट निकले है।
दीपक चन्द्रांकर –
बुहत अच्छे कलकार है। वे सोनहा बिहान में कलाकार के रुप में कम किये है। मदन निषाद जैसे नाचा कलाकार के साथ सहायक कलाकार के रुप में लोकाभिनय की है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य लोरिक चंदा, हरेली, घर कहा है, दसमत कैना, गम्मतिहा, रथयात्रा में मुख्य भूमिका अदा करने के साथ-साथ निर्देशन भी दी है। अपने गांव अर्जुन्दा में छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक मंडली ‘लोकरंग’ के स्थापना करके उसके माध्यम से बहुत काम कर रहे है। उन्हें लोककला महोत्सव (भिलाई) में पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ‘रुमझुम चिरइया’ और ‘तेल हरदी’ – ये छत्तीसगढ़ी गीत के कैसेट निकाले है जिसमें है छत्तीसगढ़ के महिमा गीत, होरी, सुवा, ददरिया, सोहर, सवनाही, श्रमगीत, नचौड़ी गीत।
ममता चन्द्राकर –
महासिंह चन्द्राकर के बेटी होने के नाते घर में ही ऐसा माहौल में पलि, बड़ी हुई कि गीत संगीत उनके रग रग में बस गई। आज छत्तीसगढ़ में ममता चन्द्राकर रेडियो, दूरदर्शन और कैसेट के माध्यम से संगीत जगत में अपना स्थान बना चुकी है। शास्रीय संगीत के गुरु डॉ. अमरेश चन्द्र चौबे है और लोकगीत क्षेत्र में है केदार यादव।
रजनी रजक –
को सर्वश्रेष्ठ गायिका और उद्घोषक के रुप में कई संस्था ने सम्मानित किया। उनके गीत जैसे ‘ए चैती जाबो उतई के बजार’ और ‘पान खाइ लेबे मोर राजा’ बहुत लोकप्रिय है। अपने पिता जी.पी. रजक को प्रेरणा स्रोत और गुरु मानते है। जी.पी. रजक छत्तीसगढ़ी के हास्य कलाकार, गीतकार वादक है तथा तुलसी चौरा (लोककला मंच) के संचालक है। रजनी रजक के गीत के अनेक कैसेट है। वे छत्तीगढ़ी कवि दानेश्वर शर्मा और कुलेश्वर ताम्रकर को अपना आदर्श मानती है।
गणेश यादव –
जिन्हें गन्नू यादव के नाम से जानते है लोग, बहुत अच्छे कलाकार, गायक है। वे दलार सिंह मंदराजी के रवेली साज में काम की है। हबीब तनबीर के साथ एवं मलय चक्रवर्ती के साथ काम की है। गन्नू यादव अच्छे तबला वादक होने के साथ-साथ कम्पो भी है। उनके पिता झुमुकलाल डिहारी भी गीत संगीत में माहिर थे। (उनकी पत्नी जयन्ती यादव के बारे में पहले लिख चुके हैं।) गन्नू यादव के अनेक कैसेट है।
संतोष शुक्ला –
बहुत ही कम उम्र में चल बसे। उनके गीत लोगों के दिल को छू लेते हैं – तीन चार छत्तीसगढ़ी गीत गाकर संगीत जगत में अपनी जगह बना लिये थे। आकाशवाणी रायपुर से उनके गीत प्रसारण होते है जैसे ‘धानी कस बइला फंदामेंव विधाता’, चारों मुड़ा ले धंधागेंव। उनका और एक लोकप्रिय गीत है – सीताराम ले ले मोर भाई जाती बिराती सीताराम ले लव। उनकी ये गीत अभी भी गुंजती है –
का राखे है तन मा संगी
का राखे है तन मा
तोर नाम अमर कर ले गा भइया
का राखे है तन मा…….