छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य
छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य
छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य बोलियों की वाचिक परम्परा पर निर्भर है. वस्तुतः लोक साहित्य दो तरह के माने जा सकते हैं-
(1) वाचिक यानी मौखिक साहित्य-
वाचिक परम्परा में लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, गीतकथा, लोकमिथ कथा, लोक नाट्य, कहावत, पहेली, लोकोक्ति आदि आते हैं तथा

(2) रचित लोक साहित्य-
इसके अन्तर्गत लिपिबद्ध किए गए गीत, कविता, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास और बोली में अनुवाद कार्य आदि आते हैं. इसे सृजनात्मक लोक साहित्य की संज्ञा भी दी जा सकती है.
ऋतु-अनुष्ठान तथा मनोरंजन के लिए हजारों पारम्परिक लोकगीत, संस्कृति की संवाहक हजारों लोककथाएँ, जातीय गौरव की अनेक लोककथाएँ, प्रेम, शृंगार और पराक्रम के हजारों गीत, कथाएँ, कार्य और कारण की मूल कहानियाँ, मिथ कथाएँ, मनोरंजन के लिए लोक नाट्य, वजनदार अनुभवी खरी बातों के लिए हजारों कहावतें, बुद्धि पर शान चढ़ाने के लिए पहेलियाँ, मनुष्य को राह दिखाने के लिए अनगिनत लोक कवितायें प्रचलित हैं.
यहाँ छत्तीसगढ़ी संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में वाचिक परम्परा के अन्तर्गत आने वाले ऊपर बताए तत्वों का विश्लेषण हमारा मूल अभिप्राय है, क्योंकि छत्तीसगढ़ की संस्कृति इन्हीं तत्वों में सन्निहित है.